“ महाबार में रेतीले टीलों पर जब पद्मश्री अनवर खान “पधारो नी म्हारे देस’ , रुखमा बाई मांड गायकी के सुर छेड़ती तो सामने बैठे देसी-विदेशी दर्शक भावविभोर हो जाते. देर रात चलने वाली इस लोकसंगीत रात्रि में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों को रोजगार मिलता था. बीते दशक भर से यह संगीत से लबरेज शाम उदासीनता के स्याह अंधेरों में खो चुकी हैं.
गौरतलब बात तो यह हैं कि कोई निश्चित तारीख बाड़मेर के प्रशासन ने “थार महोत्सव” के लिए निर्धारित नहीं कर रखी हैं , यही वजह हैं कि हर बार ‘थार महोत्सव’ रीत का रायता बनकर साबित हुआ हैं”
बाड़मेर.पश्चिमी राजस्थान की लोक कला, संस्कृति, परम्परा , लोकगीत-संगीत, लोकजीवन , थार की जीवन शैली, इतिहास से दुनिया को रूबरू करने के उद्देश्य से वर्ष 1986 में जिला प्रशासन ने थार महोत्सव नाम से लोक मेले की शुरुआत इस उद्देश्य से की थी कि विदेशी पर्यटक थार की संस्कृति से जुड़े.
मगर अफ़सोस कि करीब साढ़े तीन दशक के बाद भी बाड़मेर का थार महोत्सव विदेशों की बात छोड़े आसपास के जिलों में भी अपनी पहचान नहीं बना पाया हैं ।
इस एतिहासिक थार महोत्सव से देसी-विदेशी पर्यटकों को जोड़ने की बजाय स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के मनोरंजन का साधन बन गया। सबसे बड़ी बात की थार महोत्सव की कलेंडर तारीख आज भी तय नहीं है, जो भी जिले में नया कलेक्टर आया उसने अपनी मर्जी व सुविधा के अनुसार तारीखे तय की और यह सिलसिला आज भी चलता आ रहा हैं।
वो लोग सलाहकार जिनका बाड़मेर से कोई जुडाव नहीं
आज तक के आयोजन मे थार महोत्सव के आयोजन की कमेटी में ज्यादातर लोग वो हैं, जो थार की लोक कला और संस्कृति के बारे में भी कुछ नहीं जानते। बाहरी अधिकारी और कथित सदस्यों की सलाह पर थार महोत्सव में थार की लोक कला संस्कृति लोक गीत संगीत को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों को स्थान देने की बजाय उलुल-जुलूल कार्यक्रमों को इसमे शामिल कर महोत्सव के उद्देश्य को ही ख़तम कर दिया गया। प्रशासनिक अधिकारी अपना अपना टाइम पास करने के उद्देश्य से कभी राजा हसन तो कभी कैलाश खेर को मोटी रकम देकर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बुलाते रहे हैं, जिनका थार की संस्कृति से कोई लेना देना नहीं। बाड़मेर जैसलमेर लोक गीत संगीत का खजाना है। यंहा लोक गायकी और संगीत से जुड़े नायब हीरे जड़े हैं, जिन्होंने राजस्थान की लोक कला और संस्कृति को सातवें आसमान तक और सात समुन्दर पार तक पहुंचाया। यंहा के लोक कलाकारों को अपने ही महोत्सवों में मौका नहीं मिलता। उन्हें हमेशा ऐसे कार्यक्रमों में नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है। थार महोत्सव का आयोजन का जिम्मा उन लोगों के पास है, जिनका थार से कोई जुड़ाव नहीं। ऐसे में तीन दिन के आयोजन में लोक कला की बजाय बॉलीवुड का संगीत आयोजन की इतिश्री कर डालता हैं.
पड़ौसी जिले का मरू महोत्सव विश्व विख्यात
एक तरफ जैसलमेर का मरू महोत्सव है, जिसने कम समय में पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई। जिसका मूल कारण स्थानीय लोक कलाकार हैं, जिन्होंने अपने कला से मरू महोत्सव को नई ऊँचाइयां प्रदान की। वहीं दूसरी तरफ थार महोत्सव है, जो तीस साल में अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया, जिसका जिम्मेदार प्रशासन की नासमझी है। आखिर थार महोत्सव का आयोजन क्यों और किसके लिए किया जा रहा है, यह समझ से परे है।
इधर, कुछ दिनों से थार महोत्सव का आयोजन कवायद को शुरू किया गया है, मगर पूरे बाड़मेर शहर में इसकी कहीं कोई न चर्चा हैं और न इसके प्रति आकर्षण. हर बार शहर में मात्र चार बैनर लगाए जाते रहे हैं। प्रचार के लिए सबसे दुखद पहलू यह है कि इन बैनरों में राजस्थान और थार की लोक संस्कृति को स्थान देने की बजाय बॉलीवुड कलाकारों को प्रमुखता दी जाती है। थार महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य ही ख़तम होता जा रहा है। बाड़मेर और थार की मरुस्थली लोक संस्कृति और परम्परा का नाश किया जा रहा है। ऐसे में जब कार्यक्रम थार महोत्सव का हो उसमें गैर राजस्थानी संस्कृति के कलाकारों के कार्यक्रमों के आयोजनों पर उंगलिया उठना स्वाभाविक है। बहरहाल जिला प्रशासन राजस्थान की लोक कला और संस्कृति की बैंड बजाने पर तूला है।
आय के नाम पर कुछ भी नहीं
बाड़मेर में आयोजित होने वाले थार महोत्सव में विदेशी और देशी पर्यटक न के बराबर शामिल होते है. प्रशासन को कार्यक्रम में पड़ोसी जिले जैसलमेर से विदेशी पर्यटकों को ले आने के लिए कैम्प करने पड़ते हैं. दरअसल , प्रचार प्रसार में थार महोत्सव सिफर हैं यही वजह हैं कि लोग इससे जुड़ नहीं पाते. आयोजन के लिए बाड़मेर जिला प्रशासन बाड़मेर में कार्यरत कम्पनियों के सीएसआर फंड पर आश्रित हैं जबकि पर्यटन विभाग से मिलने वाली राशि अपर्याप्त होती हैं. स्थानीय होटल संचालको को इसमें शामिल करने से थोड़ी बहुत आयोजन की सार्थकता साबित होती हैं .
क्या कहते हैं लोक कलाकार
बाड़मेर के निवासी इंडियन आइडल फेम मोती खान इन दिनों मुंबई में एक रियलटीशो की शूटिंग में व्यस्त हैं. दूरभाष पर बातचीत में मोती खान ने कहा कि “बाड़मेर जैसलमेर में लोक कला का समन्दर हैं जिससे निकलने वाली सुर सरिता ने मुंबई से लंदन तक सुर रसिको की प्यास बुझाई हैं. बदकिस्मती यह हैं कि बाड़मेर में जहाँ कला का बड़ा संगम होना चाहिए उस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा. मजबूरन कलाकारों को दूसरे क्षेत्रों की और जाकर अपना हुनर आजमाना पड़ता हैं. यही बात अंतर्राष्ट्रीय लोककलाकार फकीरा खान कहते है. बकौल फकीरा खान “थार महौत्सव नए और पुराने लोक कलाकारों के लिए संजीवनी से कम नहीं था लेकिन एक दशक से इसका बंद होना दुखद हैं.
कलाकारों को मलाल “उद्देश्य से भटक गया हैं महोत्सव”
पश्चिमी राजस्थान के बाडमेर में चल रहे थार महोत्सव से जुडे़ लोक कलाकारों का कहना है पश्चिमी राजस्थान की ऐतिहासिक भव्यता, लोक संस्कृति, लोक गायकी, गीत-संगीत और थार की जीवन शैली को देश-दुनिया से रुबरु कराने के मकसद से शुरु हुआ महोत्सव अपने उद्देश्य से भटक गया है।
अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार फकीरा खान ने कहा कि थार महोत्सव की शुरूआत के साढ़े तीन दशक बाद भी बाडमेर की सीमाएं नहीं लांघ पाया है। पड़ोसी जिले जैसलमेर के मरु महोत्सव की तर्ज पर शुरु किए गए इस महोत्सव का असली मकसद देशी-विदेशी पर्यटकों को बाडमेर लाकर उन्हें थार की समृद्ध संस्कृति से रुबरु कराना था, लेकिन यह महोत्सव देशी-विदेशी पर्यटकों को थार से जोड़ने की बजाय स्थानीय प्रशासनिक अमले के मनोरंजन का साधन बनकर रह गया है। कलाकारों का कहना है कि दुनिया के दूसरे देशों में थार की लोक कला का जादू बिखेरने वाले लोक कलाकार अपने घर में दर्शक दीर्घा में बैठकर बाहर के कलाकारों की प्रस्तुतियां देख रहे है।
उन्होंने कहा कि पश्चिमी राजस्थान के बाडमेर-जैसलमेर जिलों में लोक गीत संगीत का खजाना है। थार के ऐसे लोक कलाकारों, जिन्होंने अपने हुनर और गायकी के जादू से दुनिया के कई देशों में अपना नाम रौशन किया है और थार की संस्कृति की अमिट छाप छोडी है, उनकी थार महोत्सव में अनदेखी की जा रही है। लोक कलाकार फकीरा खान बताते हैं कि थार महोत्सव में हमारी स्थिति घर की जोगी जोगटा और आन गांव का सिद्ध जैसी हो गई है। बकौल फकीरा खान थार महोत्सव में प्रस्तुति के लिए बड़े सेलिब्रिटीज को बुलाया जाए , थार की धरती पर सबका स्वागत है, लेकिन अपने ही घर में हमें अपनी अनदेखी अच्छी नहीं लगती है।
फकीरा के मुताबिक, सात समन्दर पार दुनिया के दूसरे देशों में लोग हमारी प्रस्तुतियों पर झूम उठते हैं और हमें वहां बड़ा मान-सम्मान मिलता है, लेकिन अपने ही घर में हम बेगाने हैं।
यहां हैं पर्यटन की संभावनाएं
बाड़मेर जिले में तिलवाड़ा पशु मेला, कनाना गैर मेला, महाबार के मखमली धोरे, नाकोड़ा का धार्मिक पर्यटन, मुनाबाव का बॉर्डर, किराडू के मंदिर, हैण्डीक्राफ्ट, बीसू के मंदिर, पचपदरा के नमक के पिरामिड, सिवाना का किला, हल्देश्वर की पहाडि़यां, गेर नृत्य, मांगणिहार गायकी और यहां की पशु समृद्धि के साथ ही मरू उद्यान भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हो सकते हैं। यहां मोटर बाइकिंग का भी पूरा माहौल है। जैसलमेर आने वाले पर्यटकों को यहां के लिए आकर्षित किया जा सकता है।
विदेशी पर्यटकों के लालच में देशी पर्यटकों की नजरअंदाजगी
चार बार मिस्टर थार रह चुके इंद्र प्रकाश पुरोहित के अनुसार बाड़मेर में थार महोत्सव में विदेशियो की संख्या नगण्य रहती हैं जिसके कारण स्थानीय प्रशासन इस महत्वपूर्ण आयोजन को नजरअंदाज करता हैं जबकि राजस्थान आने वाले देसी पर्यटकों का कोई मान नहीं हैं अगर देश के पर्यटकों को आकर्षित करें तो भी यह आयोजन विश्वविख्यात हो सकता हैं. पुरोहित के अनुसार देशी कलाकार को बुलाना तो दूर की बात प्रशासन थार महोत्सव के मौके पर इस आयोजन के सबसे बडे़ खिताब थारश्री से नवाजे गए लोगों को भी याद नहीं करता है। ऐसे में अब यह सम्मान भी बेमाना लगता है। उन्होंने कहा कि न स्थानीय लोक कलाकार हैं और न लोक संस्कृति की छवि, जिससे हालिया दिनों में हो रहे आयोजनों का थार की सांस्कृतिक विरासत से कोई लेना देना नहीं है।
सबकी मदद से होगा आयोजन – कलक्टर
बाड़मेर जिला कलक्टर लोकबन्धु के अनुसार 28 मार्च को तिलवाड़ा पशु मेले से इस महोत्सव का आगाज़ होगा जो तीस मार्च राजस्थान दिवस तक चलेगा. उनके अनुसार स्थानीय लोगों , निजी कम्पनियों , बीएसएफ , आर्मी की मदद से यह आयोजन होगा.
मां ने बेटे व बेटी के साथ पानी के टांके में कूद की आत्महत्या
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सूचना पर समदड़ी थाना पुलिस व तहसीलदार मौके पर पहुंचे, लेकिन देर रात तक पीहर पक्ष के नहीं पहुंचने से तीनों शवों को टांके से बाहर नहीं निकाला जा सका। मौके पर पुलिस का जाप्ता तैनात
समदड़ी थाना क्षेत्र के बालू गांव में मंगलवार शाम को एक महिला ने अपने बेटे व बेटी के साथ पानी के टांके में कूद आत्महत्या कर ली। सूचना पर समदड़ी थाना पुलिस व तहसीलदार मौके पर पहुंचे, लेकिन देर रात तक पीहर पक्ष के नहीं पहुंचने से तीनों शवों को टांके से बाहर नहीं निकाला जा सका। मौके पर पुलिस का जाप्ता तैनात था। समदड़ी थानाधिकारी महेश गोयल ने बताया कि बालू गांव में मंगलवार शाम करीब 6:30 बजे एक घर में बने पानी के टांके में नखत कंवर (35) पत्नी भीमसिंह ने अपने 10 वर्षीय पुत्र जोगसिंह व 7 वर्षीय पुत्री पूजा कंवर के साथ कूद कर आत्महत्या कर ली। सूचना पर समदड़ी थाना पुलिस मौके पर पहुंची। शवों को टांके से बाहर नहीं निकाला जा सका जानकारी पर समदड़ी तहसीलदार हनवंतसिंह देवड़ा भी मौके पर पहुंचे। इन्होंने मौका मुआयना करने के बाद मृतका के पीहर पक्ष को घटना की जानकारी दी, लेकिन देर रात तक पीहर पक्ष के नहीं पहुंचने से तीनों शवों को टांके से बाहर नहीं निकाला जा सका।
Children Escaped: जयपुर बाल सुधार गृह की ग्रिल तोड़कर फरार हुए 22 बच्चे, एक साथ इतने बच्चों के भागने से प्रशासन के हाथ-पांव फूले
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22 Children Escaped From Bal Sudhar Grih: बाल सुधार गृह से 22 बच्चों की सूचना के बाद मौके पर ट्रांसपोर्ट नगर थाना पुलिस पहुंच गई है और मामले की जांच कर रही हैं. मौके पर पुलिस विभाग के आलाधिकारी भी पहुंचे गए हैं. बाल अपचारी बाल सुधार गृह के स्टोर की खिड़की तोड़कर फरार हुए हैं.
Jaipur Child Correctional Home: राजधानी जयपुर स्थित बाल सुधार गृह से एक साथ 22 बच्चों के फरार होने की खबर हैं. खबर के मुताबिक बाल अपचारी बाल सुधार गृह का ग्रिल तोड़कर वहां से फरार हुए है. एक साथ 22 बच्चों के फरार होने की सूचना जैसे ही फैली, अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गए.
बाल सुधार गृह से 22 बच्चों की सूचना के बाद मौके पर ट्रांसपोर्ट नगर थाना पुलिस पहुंच गई है और मामले की जांच कर रही हैं. मौके पर पुलिस विभाग के आलाधिकारी भी पहुंचे गए हैं. बाल अपचारी बाल सुधार गृह के स्टोर की खिड़की तोड़कर फरार हुए हैं.
बाल सुधार गृह के अधीक्षक मनोज कुमार ने बताया कि हम लोगों को जैसे ही बच्चे फरार होने की सूचना मिली, वैसे हम लोग मौके पर पहुंचे और पुलिस को सूचना दी. उन्होंने बताया कि बच्चे दीवार कूद कर फरार हुए हैं. पूरे मामले में निजी गार्डन की तरफ से लापरवाही की बात कही जा रही है.फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है.
गौरतलब है पिछले छह महीन में बाल सुधार गृह में ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ी हैं. इतन सारे बच्चों के एक साथ फरार होने से जिला प्रशासन में हड़कंप मच गया है और फरार बच्चों की धरपकड़ के लिए पुलिस कार्रवाई में जुट गई है. फरार बच्चों ने बाल सुधार गृह के स्टोर को तोड़कर फरार हुए हैं.
Poonam Pandey News: एक्ट्रेस-मॉडल पूनम पांडेय जिंदा है. शनिवार को उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से एक वीडियो भी पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने सर्वाइकल कैंसर के प्रति ‘जागरूकता’ का दावा करते 32 साल की उम्र में अपनी मौत की खबर को झूठा बताया है. आपको बता दें कि 24 घंटे पहले इसी इंस्टाग्राम अकाउंट से एक्ट्रेस के मौत होने की जानकारी साझा की गई थी. NDTV ने पूनम की मैनेजर से भी इस खबर की पुष्टि की थी. लेकिन अब पूनम पांडेय ने अपनी मौत की खबर को सर्वाइकल कैंसर के प्रति ‘जागरूकता’ का नाम दिया है.
एक्ट्रेस ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘मैं आप सभी के साथ कुछ महत्वपूर्ण बात साझा करना चाहती हूं. मैं यहां हूं, जीवित हूं. सर्वाइकल कैंसर से मेरी मौत नहीं हुई है. लेकिन दुखद बात यह है कि इस बीमारी ने उन हजारों महिलाओं की जान ले ली है जो इस बीमारी से निपटने के बारे में ज्ञान की कमी के कारण पैदा हुईं. कुछ अन्य कैंसरों के विपरीत, सर्वाइकल कैंसर पूरी तरह से रोकथाम योग्य है. मुख्य बात एचपीवी वैक्सीन और शीघ्र पता लगाने वाले परीक्षणों में निहित है. हमारे पास यह सुनिश्चित करने के साधन हैं कि इस बीमारी से किसी की जान न जाए. आइए आलोचनात्मक जागरूकता के साथ एक-दूसरे को सशक्त बनाएं और सुनिश्चित करें कि हर महिला को उठाए जाने वाले कदमों के बारे में जानकारी हो. क्या किया जा सकता है इसके बारे में गहराई से जानने के लिए बायो में दिए गए लिंक पर जाएं. आइए, मिलकर इस बीमारी के विनाशकारी प्रभाव को समाप्त करने और #DeathToCervicalCancer को खत्म करने का प्रयास करें.’